Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


अमराई

२]
इसकी खबर ठाकुर साहब के पास पहुँची । अमराई उन्हीं की थी। अभी तीन ही महीने पहिले वे राय साहेब हुए थे। आनरेरी मजिस्ट्रेट वो थे ही, और थे सरकार के बड़े भारी खैरख्वाह। जब उन्होंने सुना कि अमराई तो असहयोगियों का अड्डा बन गई है, प्रायः इस प्रकार वहाँ रोज़ ही होता है तो वे बढ़े घबराए, फौरन घोड़ा. कसवा कर अमराई की ओर चल पड़े । किन्तु उनके पहुँचने के पहिले ही वहाँ पुलिस भी पहुँच चुकी थी। ठाकुर साहब को देखते ही दरोगा नियामत अली ने बिगड़ कर कहा--ठाकुर साहब ! आप से तो हमें ऐसी उम्मीद न थी। मालूम होता है कि आप भी उन्हीं में से हैं। यह सब आप की ही तबियत से हो रहा है। लेकिन इससे अमन में खलल पड़ने का खतरा है। आप ५ मिनट के अन्दर ही यह सब मजमा यहाँ से हटवा दीजिये, वरना हमें मजबूर दोकर लाठियाँ चलवानी पड़ेंगी ।

ठाकुर साहब ने नम्रता से कहा-दरोग़ा जी ज़रा सब्र रखिए, में अभी यहां से सब को हटवाए देता हूँ । आपको लाठियाँ चलवाने की नौवत ही क्‍यों आएगी। नियामत अली का पारा ११० पर तो था ही बोले फिर भी मैं आपको पहले से आगाह कर देना चाहता हूं कि ज्यादः से ज्यादः दस मिनट लगें नहीं तो मुझे मजबूरन लाठियाँ चलवानी ही पड़ेंगी। ठाकुर साहब ने घोड़े से उतर कर अमराई में पैर रखा ही था कि उनका सात साल का नाती विजय हाथ में लकड़ी की तलवार लिए हुए आकर सामने खड़ा हो गया। ठाकुर साहब को सम्बोधन करके बोला--
दादा ! देखो मेरे पास भी तलवार है, मैं भी बहादुर बनूंगा ।

इतने ही में उसकी बड़ी बहिन कांती, जिसकी उमर करीब नौ साल की थी धानी रंग की साड़ी पहिने आकर ठाकुर साहब से बोली-"दादा ! ये विजय लकड़ी की तलवार लेकर बड़े बहादुर बनने चले हैं। मैं तो दादा ! स्वराज का काम करूँगी और चर्खा चला चला कर देश को आजाद कर दूंगी फिर दादा बतलाओ, मैं बहादुर बनूंगी कि ये लकड़ी की तलवार वाले ?"

विजय की तलवार का पहिला वार कान्‍ती पर ही हुआ, उसने कान्‍ती की ओर गुस्से से देखते हुए कहा- "देख लेना किसी दिन फांसी पर न लटक जाऊं तो कहना । लकड़ी की तलवार है तो क्‍या हुआ मारा कि नहीं तुम्हें ?"

बच्चों की इन बातों में ठाकुर साहब क्षण भर के लिए अपने आपको भूल से गए। उधर १० मिनट से ११ होते ही दरोगा नियामत अली ने अपने जवानों को लाठियां, चलाने का हुक्म दे ही तो दिया । देखते ही देखते अमराई में लाठियाँ बरसने लगी । आज अमराई में ठाकुर साहब के भी घर की स्त्रियाँ और बच्चे थे और गाँव के भी प्रायः सभी घरों की स्त्रियाँ बच्चे और युवक त्योहार मनाने आए थे। उनकी थालियाँ राखी, नारियल, केशर, रोली, चन्दन और फूल मालाओं से सजी हुई रखी थीं। किन्तु कुछ ही देर बाद जिन थालियों में रोली और चन्दन था खून से भर गईं ।

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